Saturday, March 10, 2012

वेदना की चुपकी


चुपकेसे....
एक बूंद गिरी,
गीला कुछ न हुआ
न कुछ खाली हुआ
न कुछ भरा
और यह समा !,
हाल जैसा था,
अब भी है !,
सुखा
न बरसना
न बहना
न कोई आहट
न हलचल
बस एक गजब की चुपकी !!
प्रकृति यही है !
है?
जनक देसाई 

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