Saturday, March 10, 2012

इतिहास ‘ढाई अक्षर’ का..

मैं क्या कहूँ...??
मुझसे पहले भी ना जाने
कितनी बार रचाई गई है कविता,
लिखा गया है इतिहास ‘ढाई अक्षर’ का.
जिसमें सिमट गई है पूरी दुनिया.
हां प्रेम है वो बस प्रेम....
जीवन के हर पल में है प्रेम,
बारिश की रिमझिम फुहारों में है प्रेम,
पंछियों की चहचहाट के सुरो में है प्रेम,
हवाओं की मीठी गंध में....
बहते झरनों की तरंग में है प्रेम.
यह इक रंग ऐसा है जो हर रंग पर है भारी,
उम्र के हर ठहराव पर चेहरे पर देता है लाली
रंग दो आज मुझको अपने इस रंग में..
प्रियतम ऐसे ही रंगो कि बरसात करो....
संग मेरे पुनर्जन्म लेने का उपकार करो.
रेखा पटेल.

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