Sunday, March 11, 2012

क्या पाया !

अच्छा हुवा तुम्हे रिस्तो की बुनियाद से पाया नही है
इस लिये आप के बाद कोइ ख्यालो मे आया नही है

किस मोड पे जिंदगीने मुजे तुम से मिला दीया है
यहां तुम्हे नही पाया तो दुनिया मे भी पाया नही है

रस्म रिवाजो के असुलो को हम दोनो भूले जा रहे है
तुम्हे पाने मे रस्मो रिवाजो को बिच मे लाया नही है

पुरी जिंदगी कट जायेगी आलादरज्जे की नुमाइशो मे
आप की मुश्कान से बहेतर दुनिया में नुमाया नही है

झिल सी गहेरी आंखो में कुछ बहेतरीन अंदाज देखे है
हमे मिलने से पहेले ऐसा नजाकती दोरा छाया नही है

आयने की हसीं भी आप अपनी अदा से छिन लेती है
आयना भी कहेता है ऐसा जल्वारेझ हुस्न पाया नही है

थॉडी सी गुमसुदा रहेती है उनको भी मनाया करो
मोहतरमा को ऐसे मनावो जैसे किसीने मनाया नही है

(नरेश के.डॉड़ीया)

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