Sunday, March 11, 2012

पिधलती रही चादनी

पिधलती रही चादनी रातभर प्यार फिर घिर आया.
आज धरती पर झुका आकाश बादल फिर घिर आये.
तृप्त हुई तपती धरा की तृषा बादल फिर घिर आये.
तुम आये तो संग प्यार का सैलाब फिर टूटकर आया.
प्रकृती भीगती रही संग मेरे आज दुल्हन बन आई.
कुछ ख़्वाब कुछ गुफ़्तगूं साथ तेरे जलतरंग बन आये.
क़िस्सा अहसास का थरथरा प्यार धुआँधार आया.
छुटी हुई काग़ज़ की कश्तियाँ वापस फिर घर आई.
रेखा ..

No comments: