Friday, August 3, 2012

हर तरफ रंगीनी है

संभल न पाना आँचल का...
कितना गहरा प्रभाव है तुम्हारा मस्त हवाओं पर,
हर मौसम पर रवानी है !

अधरों पर है प्यास जगी...
कितना मीठा प्रभाव है तुम्हारी ईन अंगुलियो पर,
हर शाम अब सुहानी है!

शर्माती आँखें चमक गई...
कितना कातील ललचाव है ये बोलती निगाहो पर,
हर तरफ बहेता झरना है!

दिलमें रजनीगंधा महकने लगी,
कितना गुलाबी प्रभाव है तुम्हारी मुक्त हँसी पर,
हर अहसास सुगंधी है!

बेरंग हथेलिया सजने लगी...
कितना रुहानी प्रभाव है तुम्हारे रंगीन प्यार पर.
हर तरफ रंगीनी है!
रेखा
7/27 /2012

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