Sunday, August 26, 2012

व्यथा विरहिणी की ...

व्यथा विरहिणी की ...
मैंने चुपके से संदेश भेजा है,
ये बात किसीको ना बतलाना तुम,
कहते है सब घरमे ,
मिले फ़ुरसत तो घर आना तुम.

मेरे हालात मेरी मजबूरी,
सब एक साथ पुछती है
" तुम घर कब आओगे?"

बहुत दिनों बाद आँखें फिर भर आइ है ,
चुभन ऊठी मनमे कुछ यादें जैसे तीखी है,
अब कोइ ना इच्छाओं के अंकुर बाकी है.
तुम नई आश जगाने आ जाना.

सावन के मौसम में पतझड़ सा नझारा है
झरझर झरती बारिश में,
दिल पर अकालने डेरा डाला है
इस सुखे बंजर दिल पर
तुम बारीस बन के बरस जाना.

कुछ हद तक मजबूरी संभाल लेती है,
राशन वाले बनिये का कर्ज पुराना है,
भैया अब कम दुघ लाता है,
मॉ की खासी भी अब रुकती नही
तुम्हे दुघ्का कर्ज चुकाना है
मॉ को मिलने के बहाने आ जाना.

पड़ोसमे बिमला ने बात फेलाई है ,
मेरी कोई सौतन चुपके से आई है
साँसे कुछ पल दो पल थम जाती है,
इसी बातको जुट्लाने तुम आ जाना.

कल बाजार में एक मिलता चहेरा देखा था,
मुन्नी "पापा " करके उसे बुलाने लगी,
बच्ची अब शकल भी भुलाने लगी,
तुम उसे याद दिलाने आ जाना.

जिस चौखट पर थामा दामन हमने साथ,
वह अंगना आज टूटने की कगार पर है,
रसोईघर की दीवार अब टूटने को है,
उस मरम्मत के बहाने आ जाना.

उम्मीद की किरन दिल मे रोज नीकलती है
चिठ्ठी पत्री तुम्हारी अकसर मिलती है
लेकिन खूश्बू तुम्हारी नही आती
विराने दिलमे तुम खूश्बू भरने आ जाना

इस बार बस तुम आ जाना,
तुम दिल पे मेरे छा जाना...
रेखा पटेल (सखी )

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