Friday, August 3, 2012

अब कोई शिकायत नहीं

कितनी अजीब सी बात
कि, मैं ....
सब कुछ भूला पर भुला सका ना,
एक घड़ी का वह अपनापन.
जहाँ कहीं थी तुमने दो बाते हँस कर कभी ,
उसी आईने के अन्दर झाँकना,
बन गई है फितरत मेरी .
पहले चुपके चुपके करता था
अब वो तमाम बाते सरेआम करता हूँ ,
जिसको जो करना है करले,
अब में....
भावों की भीगी झोली में हँसके भरता हूँ.
सब कुछ भूल कर,
एक बार देखो मेरी उन आँखों में ,
जिन्हें किए थे अशान्त तुमने ,
वहा आज....
असीम प्यार का सागर लहराता है.
अब कोई शिकायत नहीं
कोई आत्मसम्मान नहीं..
बस में हु तुम हो पल-पल बिखरता प्यार है ...
रेखा


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