Sunday, September 9, 2012

झरता है जल झरझर मन पागल जरा संभल

झरता है जल झरझर मन पागल जरा संभल,,
मन पागल जरा संभल कही गिरना जाए जल..
आई बरसात घिर आये काले बादल.
झुलसी जब धरती की हरी गोद,
मौसम ने तब तब भेजे घने बादल.
झरता है जल झरझर मन पागल जरा संभल,,
जैसे ही बिजली चमकी गरजे बादल,
धरती को छूने बूँदे आ पहोची आगन,
मिटटी ने तब तब फेलाई सोंधी सुगंध.
झरता है जल झरझर मन पागल जरा संभल,,
बरसी बरसात की बूँदें छोड़के बादल,
पुराने लिबास छोड़ने यहाँ वादिया खड़ी,
हवा में पत्ते पत्ते का खेल देखा रहा बादल.
झरता है जल झरझर मन पागल जरा संभल,,
प्यासी नदियों की पुकारें सुनता था बादल.
भेजे सौ जल-धार मिलाने नदी को सागर,
रस की दौड़ भर भर आखे देखा रहा बादल,
झरता है जल झरझर मन पागल जरा संभल,,
झरता है जल झरझर मन पागल जरा संभल,,
मन पागल जरा संभल कही गिरना जाए जल.
रेखा (सखी )

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