Thursday, May 17, 2012

वो प्रेम है.

मैं क्या कहूँ..
जीवन के हर पल में तुम साथ रहो...
मुझसे पहले भी ना जाने
कितनी बार रचाई गई है कविता,
जिसमें सिमट गई हो पूरी दुनिया,
वो प्रेम है.
बारिश की रिमझिम फुहारों में है प्रेम,
पंछियों की चहचहाट के सुरो में है प्रेम,
हवाओं की मीठी गंध में....
बहेते ज़रनो की तरंग में है प्रेम.
यह इक रंग ऐसा है जो हर रंग पर है भारी,
उम्रके हर ढहेराव मे चेहरे पर फैलाता है लाली.
रंग दो आज मुझको अपने इस रंग में.
जैसे तुम्हारा नाम है वैसे ही तुम्हारा साथ,
"विनोद "संग ऐसे ही रंगो कि बरसात करो.
तुम संग मेरे पुनर्जन्म लेने का उपकार करो.
रेखा पटेल.

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