Tuesday, May 29, 2012

अपनी परछाई में विलीन करलो ...

जब चाँद ना निकले बादलों से
और रात बहुत गहरी लगे
तब तुम मेरा हाथ थामलो,
घनघोर अंघेरे में बनके दिया तुम साथ रहो...

... जब गरजते हो बादल घने,
और तूफ़ान घिरने लगे
तब तुम मेरे साथ रहो,
अपने सायेमें छुपाके बारिस में पास रहो...

बरसती चैत्र की कड़ी घूप में,
अपने आप में पिघलने लगू
तुम वटवृक्ष की छाया बनकर,
अपनी परछाई में विलीन करलो ...
 

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