Tuesday, October 23, 2012

फुलोसे ही गुलदस्ता बनता है

किसने कहे दिया फुलोसे ही गुलदस्ता बनता है
सलीके से तराशे तो पत्थर भी सुन्दर लगता है.

जब अपनो का साथ हो हर दर्द दवा बनती है
दिलमें भरा हो प्यार तो घर खुदाका लगता है

ग़मों से निढाल दिलमे प्यारसे हौसला बढ़ता है
तुम्हारे आने से आलम सारा बदला लगता है
 
जहान भरकी भले ही हमने की शेरो सायरी है
एक तेरे गुनगुनाने से हर बोल ग़ज़ल लगती है
 रेखा (सखी ) 10/23/12

 

1 comment:

Jaymini said...

Very nice poem.