Monday, December 10, 2012

बरसों से,हम और तुम

बरसों से,
हम और तुम
लोहे की दो पटरी के समान है
जो दुर दुर तक साथ देती है,
पास रहेते कभी मिल नहीं पाती ..
 
बरसों से
हम और तुम,
दीवार पर दो टंगाई हुई तस्वीरे है
सालों से पास पास सजती है,
फिरभी एक दुसरे को देख नहीं पाती..

बरसों से
हम और तुम,
एक ही पन्नेकी दो बाजू है
एक बिना दूसरा अघुरा है,
एक होकर भी आगे पीछे पढ़ नहीं पाते...

बरसों से,
हम और तुम,
साहमृग बनकर कामों में डूबे रहेते है
मन ही मन कितना बतियाते है,
लगता है कभी खत्म नहीं होंगी बातें.....

बरसों से...
हम और तुम
कितना अजीब है अलग होकर भी एक है.
रेखा ( सखी )
 

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