गर्दिशो के दौर में वो भीगा सा एक लम्हा...
खिडकीओ से एक दुसरे को दुरसे देखा करना.
अभी तक याद है मुजको वो भीगा सा एक लम्हा...
रात को छत पे जाना और हवासे बाते करना.
छोटी छोटी खुसिया भरा वो अपना सा एक लम्हा...
वो पूर्णिमा की रात में चाद छुपने की दुआ करना
बनाकर जाम चादनी को पिया था हमने एक लम्हा...
दिल की बातो होठो पे आते आते रोका करना.
अभी तक है याद मुजको वो उलज़ा सा एक लम्हा.
अब दुरसे ही सलामती की दुआ करना
किस्मत की लकीर में हुआ गायब वो एक लम्हा...
रेखा( सखी )
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